दिल के घाव
कब तक नीर बहाऊँ कान्हा ।
कब तक झूठी आस दिलाऊँ ।
आज़ादी तो मिली देश को ,
नारी मन अब भी बंदी है।
दिल के घाव अब भी हरे है,
कब तक मर्म छुपाऊँ ।
मेरे मोहन तेरी मुरली धुन पर
कब तक मर्म गीत सुनाऊँ।
पैतिस टुकड़ों मे है बेटी
,झूठे इश्क़ के वादों पर।
कितने किस्से कितनी वेदना ,
मै तुझको बना लाऊं बतालाऊं
पारुल राज
स्वरचित