Saturday, September 6, 2025

दिल के घाव

दिल के घाव

कब तक नीर बहाऊँ कान्हा ।
कब तक झूठी आस दिलाऊँ ।
आज़ादी तो मिली देश को ,
नारी मन अब भी बंदी है।

दिल के घाव अब भी हरे है,
कब तक मर्म छुपाऊँ ।
मेरे मोहन तेरी मुरली धुन पर
कब तक मर्म गीत सुनाऊँ।

पैतिस टुकड़ों मे है बेटी
,झूठे इश्क़ के वादों पर।
कितने किस्से कितनी वेदना ,
मै तुझको बना लाऊं बतालाऊं

पारुल राज
स्वरचित

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